भारत संस्कृत परिषद ' की स्थापना माघ शुक्ल पंचमी, विक्रम संवत 2044 (1987) को माँ की उपस्थिति और मार्गदर्शन में की गई थी। श्री. मोरोपंत पिंगले, विहिप के मार्गदर्शक, एक सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक भी हैं, जो देवभाषा संस्कृत के कायाकल्प और माँ के साथ भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में अपनी गहरी रुचि के लिए जाने जाते हैं। आचार्य गिरिराज किशोर ने निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित "अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन" के अवसर पर कहा:
संस्कृत भाषा के पुनरुद्धार और विकास के लिए हर संभव प्रयास करना और संस्कृत अध्ययन केंद्रों की स्थापना करना। वेद विद्याओं के अध्ययन और अनुसंधान के लिए शोध केंद्रों, कार्य शालाओं और प्रशिक्षण शिविरों के लिए प्रायोजकों की तलाश शुरू की और संस्कृत के माध्यम से जन-शिक्षा की व्यवस्था की और विज्ञान की शिक्षा के लिए स्कूलों की स्थापना की।
प्रयाग, बरेली तथा मेरठ में संस्कृत कवि सम्मेलन आयोजित किये गये। मेरठ और प्रयाग में 'संस्कृत शिक्षा केन्द्रों' का सफलतापूर्वक संचालन किया। हिमाचल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार के सहयोग से संस्कृत शिविरों की व्यवस्था की गई। मेरठ और प्रयाग में 'संस्कृत शिक्षा केन्द्रों' का सफलतापूर्वक संचालन किया।
आज हिन्दूहृदयसम्राट श्रद्धेय अशोक सिंघल जी की जन्मजयन्ती के अवसर महर्षि भरद्वाज वेद विद्या समिति द्वारा वेदपूजन महोत्सव का आयोज किया गया
जिसमें वेद विद्यार्थियों द्वारा वैदिक मङ्गलाचरण किया गया ।
विशिष्टातिथि के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रो० प्रयागनारायण मिश्र जी ने वेद विद्यालय की स्थिति पर प्रकाश डाला ।
अध्यक्षीय उद्बोधन के रुप केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गङ्गानाथ नाथ झा परिसर के निदेशक प्रो० ललित कुमार त्रिपाठी जी ने वेद एवं भारतीय दर्शन परम्परा पर अपने विचार रखे।
वेदमूर्ति आचार्य रामकुमार शर्मा जी को वेदमार्तण्ड पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्तीण छात्रों का सम्मान किया गया । इस कार्यक्रम में डा युगान्तर पाण्डेय जी,श्री अरविन्द कुमार मिश्र जी , श्री रवीन्द्रमोहन गोयल जी उपस्थित रहे ।
वेद विद्यालय के आचार्य श्री सुनील शर्मा , आचार्य दीपक अवस्थी , आचार्य गोपालकृष्ण पण्डा ,आचार्य राकेश श्रीवास्तव ,आचार्य अभयकुमारपाण्डेय एवं विश्वहिन्दूपरिषद के पदाधिकारी उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन आचार्य हरिओम् शुक्ल जी ने किया