मणिपुर में दो मातृ सम्मेलनों का आयोजन किया गया। 1988 में पूर्वांचल और पश्चिमांचल के नागपुर, दिल्ली में महिला अभ्यास वर्गों का आयोजन किया गया। इसमें माननीया मीनाताई भट्ट, जो पूर्णकालिक थीं, उपस्थित रहीं। 1985 में महिलाओं द्वारा ब्रजयात्रा का आयोजन किया गया। 1994 की दिल्ली में ‘भूतो न भविष्यति’ ऐसा एक लाख महिलाओं का सम्मेलन किया गया। इसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी माननीया मीनाताई भट्ट, माननीया कमलेश भारती जी, माननीया ऊषा रानी सिंहल, श्रीमती मनोरमा ताई, सुश्री निर्मला जी आदि पर थी। सम्मेलन में साध्वी ऋतम्भरा जी (दीदी माँ) को दुर्गावाहिनी का अखिल भारतीय संयोजिका बनाया गया। 1992 में उज्जैन के सिंहस्थ में मध्यप्रदेश से 10 हजार बहिनों का सम्मेलन किया गया, जिसमें विजयाराजे सिन्धिया उपस्थित रहीं।
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बाल संस्कार केन्द्र, बालवाड़ी और सिलाई केन्द्रों के माध्यम से देश की सेवा, बस्तियों में सेवा कार्य प्रारम्भ किए गए। महाराष्ट्र, गुजरात में अनेक सेवा कार्य प्रारम्भ किए गए। दूसरा कालखण्ड 1984 से 1994 तक का रहा। इसमें महिला विभाग के संगठनात्मक ढ़ाँचे को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय संयोजिकाओं की नियुक्ति की गई। माननीय जी. व्ही. हुपरीकर जी को, जो केन्द्रीय मंत्री थे, महिला विभाग के विस्तार की जानकारी दी गई। इस दृष्टि से विभिन्न अंचलों में मातृशक्ति के अभ्यास वर्ग, प्रशिक्षण वर्ग के आयोजन किए गए। इसमें से कई प्रवासी महिलाएं निकल कर आईं।