vhpkp
प्रयाग से देश-विदेश भेजी गई थी श्रीराम की 1.25 लाख मूर्तियां

माघ मेला के परेड मैदान में लगे विश्व हिन्दू परिषद के शिविर में इस साल से रामलला के उसी विग्रह की पूजा-अर्चना होगी जो श्रीराम मंदिर अयोध्या में स्थापित होने जा रहा है। राम मंदिर आंदोलन का मुख्य केंद्र रहे विहिप के शिविर में साल 2001 से ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए राम मंदिर का मॉडल रखा जाता था। हालांकि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू होने के बाद पिछले साल से मॉडल रखने की परंपरा बंद कर दी गई। ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि निर्माणाधीन मंदिर में एक मुख्य व पांच उप शिखर हैं जबकि मॉडल में तीन शिखर ही था। इस साल से रामलला के विग्रह पूजन की शुरूआत होने जा रही है जो आने वाले वर्षों में जारी रहेगी। प्रमुख संतों और राम जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष परमहंस दास के कहने पर विहिप के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने सोमपुरा गुजरात के रहने वाले आर्किटेक्ट से मंदिर का मॉडल तैयार कराकर माघ और कुंभ मेला में दर्शन के लिए रखने की शुरूआत की थी। संतों ने तय किया था कि जब तक अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर नहीं बन जाता और विग्रह की स्थापना नहीं होती तब तक इस मॉडल की पूजा होती रहेगी। तीर्थ क्षेत्र संगम में पूरी दुनिया के लोग आते हैं जिनकी भावनाएं राम मंदिर के मॉडल के जरिए इस आंदोलन से जुड़ी रहेगी। विहिप काशी प्रांत के संगठन मंत्री नितिन के अनुसार 22 जनवरी को जब अयोध्या में भगवान राम की विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा हो रही होगी तब माघ मेला स्थित विहिप के शिविर में ही रामलला के विग्रह का पूजन अर्चन किया जाएगा। शिविर को कुंभ की तरह भव्य रूप में सजाया जाएगा। 22 जनवरी को बड़ी संख्या में संत, कार्यकर्ता और रामभक्त उपस्थित रहेंगे। भजन, कीर्तन और आरती के बाद प्रसाद वितरण होगा। उससे पहले मकर संक्रांति के दिन से ही विग्रह के प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण पूजित अक्षत वितरण के जरिए शिविर से दिया जाएगा।

vhpkp
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के लिए साढ़े तीन दशक तक चले आंदोलन में सर्वाधिक चर्चा में 'कार सेवा' शब्द रहा है।

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के लिए साढ़े तीन दशक तक चले आंदोलन में सर्वाधिक चर्चा में 'कार सेवा' शब्द रहा है। संतों के मार्गदर्शन में विश्व हिन्दू परिषद की अगुवाई कर रहे अशोक सिंहल के एक आह्वान पर लाखों युवा जान हथेली पर लेकर कार सेवा करने निकल पड़े थे। इस कार सेवा शब्द की उपज की भी एक रोचक कहानी है। दरअसल कार सेवा का मूल शब्द कार्य सेवा है। बोलते-बोलते कार्य सेवा का अपभ्रंश कार सेवा हो गया। आंदोलन में सहयोग के लिए कार्य सेवा शब्द का इस्तेमाल सभी धर्मों-मतों को जोड़ने के लिए किया गया था। प्रयागराज में देवराहा बाबा के सानिध्य में आयोजित 1989 के संत सम्मेलन के दौरान संतों ने साफ कर दिया कि भगवान श्रीराम का मंदिर जन्मभूमि पर ही बनेगा। जहां भगवान श्री रामलला की पूजा होती आ रही है उस स्थान को छोड़कर मंदिर कहीं अन्यत्र स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसी के साथ कार्य सेवा का आह्वान किया गया। संतों का मत था कि अयोध्या से सभी धर्मों का जुड़ाव है इसलिए इस आंदोलन में सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। इसमें सभी से कार्य सेवा नाम से सहयोग लेने की रणनीति बनी। प्रयागराज में निर्णय लिया गया कि 1990 में दीपावली के बाद देशभर से 5000 वाहिनियों में कार्य सेवक निश्चित तिथि और निश्चित संख्या में अयोध्या की ओर प्रस्थान करेंगे। कार्य सेवकों को निर्देश दिया गया कि 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में श्री राम मंदिर पुनर्निर्माण हित कार्य सेवा में बाधा उत्पन्न होने पर पुलिस के साथ संघर्ष न करते हुए शांतिपूर्वक गिरफ्तारी देंगे। अन्य प्रदेशों के कार्य सेवकों को उत्तर प्रदेश में गोरखपुर, वाराणसी, झांसी, आगरा, मथुरा, गाजियाबाद, सहारनपुर समेत आठ स्थान से ही जाने का मार्ग तय हुआ। विहिप के महानगर अध्यक्ष संजय गुप्ता के अनुसार इन आठ केंद्रों में सबसे बड़ा केंद्र प्रयागराज रहा जहां लाखों की संख्या में लोग जगह-जगह पर रुक रहे। राजनीतिज्ञों से संपर्क के लिए भी प्रयागराज में रणनीति बनी। संतर्क समिति में महंत अवैद्यनाथ महाराज गोरखपुर, महंत नृत्य गोपाल दास अयोध्या, गोपाल महाराज प्रयाग, महेश आनंद वृंदावन, रामेश्वर दास काशी, चिन्मयानंद हरिद्वार, रामानुजाचार्य वासुदेवाचार्य अयोध्या, ओंकारानंद एवं स्वामी परमानंद हरिद्वार को शामिल किया गया।

vhpkp
अयोध्या का इन धर्मों से सीधा जुड़ाव

अयोध्या जैन धर्म के पांच तीर्थंकरों आदिनाथ, अजीत नाथ, अभिनंदन नाथ सुमित नाथ व अनंतनाथ की जन्मभूमि है। प्राचीन बौद्ध ग्रंथ दीपवंश के अनुसार भगवान बुद्ध ने अयोध्या में 16 वर्ष चातुर्मास किया। सिख धर्म की बात करें तो गुरुनानक देव जब अयोध्या आए तो उन्होंने सबसे पहले राम मंदिर जाकर दर्शन किया। श्री गुरु तेग बहादुर भी अयोध्या में ठहरे थे। श्री गोविंद सिंह जब पटना साहिब से वापस आ रहे थे तब अयोध्या में रुके थे और वहां नजर बाग तथा ब्रह्मकुंड दो गुरुद्वारा बनाए गए जिनमें उक्त तीनों गुरुओं की स्मृतियां सहेजी गई है। इसीलिए सभी जाति, मत, पंथ, संप्रदाय को रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन से जुड़ने के लिए सहयोग का नाम कार्य सेवा रखा गया।

vhpkp
2002 की धर्म संसद से चरम पर पहुंचा था मंदिर आंदोलन

22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के नूतन विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा से पहले मंदिर आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाएं भी स्मृति में ताजा हो रही है। प्रयागराज में 2002 के कुंभ में विश्व हिन्दू परिषद के शिविर में लगी धर्म संसद की आंदोलन में अहम भूमिका रही। दूसरे शब्दों में कहें तो 1989 में मंदिर आंदोलन की जो चिंगारी भड़की वह 2002 के कुंभ में आयोजित धर्म संसद में ज्वाला बन गई थी। संगम की रेती पर 19 से 21 जनवरी 2002 तक आयोजित धर्म संसद में निर्णायक आंदोलन का निर्णय हुआ। संसद में जुटे छह हजार संतों ने घोषणा की कि केंद्र सरकार श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के मार्ग में आने वाली समस्त बाधाओं को अविलंब हटाए अन्यथा शिवरात्रि (12 मार्च 2002) के बाद किसी भी शुभ दिन से मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ कर दिया जाएगा। इस अभियान के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का निर्माण करने, हिंदुत्व का जागरण करने और मंदिर निर्माण के कार्य को गति प्रदान करने की दृष्टि से तीन कार्यक्रमों पुरुषोत्तम मास में भगवान शंकर का जला अभिषेक, विजय महामंत्र का जाप और अयोध्या से दिल्ली तक संत चेतावनी यात्रा की घोषणा की गई थी। विहिप काशी प्रांत के संगठन मंत्री नितिन के अनुसार 26 जनवरी 2002 को अयोध्या से संत चेतावनी यात्रा प्रारंभ हुई। यात्रा में 500 संतों के जुटने का अनुमान था लेकिन यात्रा शुरू होने के समय 1300 संत जुट गए। अयोध्या, लखनऊ और कानपुर में बड़ी-बड़ी जनसभाएं करती हुई यात्रा इटावा, आगरा, अलीगढ़, बुलंदशहर होते हुए 27 जनवरी 2002 को जब दिल्ली पहुंची तो देशभर से 7500 संतों का महाकुंभ खड़ा हो गया। दिल्ली की सभा भी ऐतिहासिक रही जिसमें डेढ़ लाख से ज्यादा लोक उपस्थित रहे। संत यात्रा के दौरान ऐसा लगा मानों 1990 जैसा श्री राम जन्मभूमि आंदोलन पुनः खड़ा हो गया है। उस समय 90 करोड़ हिंदुओं का नेतृत्व स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी दिव्यानंद, रामानुजाचार्य वासुदेवाचार्य, जगदगुरु रामभद्राचार्य, माधवाचार्य विश्वेष तीर्थ, रामचंद्र दास परमहंस और स्वामी वेदनाथ सहित कई प्रमुख संत कर रहे थे।

vhpkp
कार सेवा के शहीदों को संगम में मिला था मोक्ष

अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के दौरान सबसे बड़ा संघर्ष दो नवंबर 1990 को हुआ। पुलिस की गोलियों से शहीद 22 रामभक्तों को गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में ही मोक्ष मिला था। प्रमुख संतों ने सभी 22 शहीद रामभक्तों के अस्थिलकश 14 जनवरी 1991 को मकर संक्रांति के दिन प्रयागराज में विसर्जित किया था। 1989 में प्रयागराज के कुंभ में निर्णय लिया गया कि 18 अक्टूबर 1990 को दीपावली के बाद देशभर से 5000 वाहिनियों में कार्य सेवक अयोध्या की ओर प्रस्थान करेंगे। जिसके परिणामस्वरूप 21 अक्टूबर से सात नवंबर 1990 तक 18 दिन अयोध्या में जबरदस्त संघर्ष हुआ। संतों और विहिप के आह्वान पर विभिन्न प्रदेशों से कार सेवकों का जत्था अयोध्या की ओर कूच कर रहा था और उन्हें रोकने के लिए हर प्रकार का प्रतिबंध लगाया जा रहा था। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के उपाध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के आश्रम पर छापे डाले गए। कार्य सेवकों को पकड़-पकड़ कर जेल में बंद किया जा रहा था। श्री राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास स्थल को पूरी तरह सील कर दिया गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह प्रो. राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया को लखनऊ में ही गिरफ्तार कर लिया गया। कार सेवा के लिए 30 अक्टूबर का दिन जैसे-जैसे पास आ रहा था प्रशासन की दमनात्मक कार्यवाही तेज हो रही थी और कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ता ही जा रहा था। स्वामी वासुदेवानंद तथा राम भक्तों की गिरफ्तारी के विरोध में प्रयागराज में लगातार दो दिन तक बंदह रही। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने राष्ट्रपति को पत्र भेजकर प्रयागराज में चल रहे सरकारी आतंक और नागरिक अधिकारों के हनन पर चिंता व्यक्त करते हुए उनसे हस्तक्षेप की मांग कर डाली। 30 अक्टूबर 1990 को देवस्थान एकादशी के दिन रामदास की छावनी अयोध्या में रामदेव, महंत नृत्य गोपाल दास, अशोक सिंहल, श्रीश चंद दीक्षित आदि प्रमुख लोग पहुंचे। वहां से उनके नेतृत्व में 20 हजार कार सेवकों और भक्तों का रेला जन्मभूमि पहुंचा, पहले भगवान की मूर्ति को प्रणाम किया और फिर 'कार सेवा' यानि विवादित स्थल पर तोड़फोड़ शुरू हो गई। पहले बाहर के दो दरवाजे, फिर खिड़कियां और दीवार का कुछ हिस्सा तोड़ा। 31 अक्टूबर और एक नवंबर को अर्धसैनिक बल अयोध्या खाली करा रहे थे। फिर भी लगभग 40 से 50 हजार की संख्या में कार सेवक कार सेवा में जुटे थे। एक नवंबर को मणि रामदास छावनी में हुई बैठक में निश्चय हुआ कि करो या मरो के साथ श्री राम जन्मभूमि की तरफ कूच करेंगे। 16 साधुओं ने आमरण अनशन शुरू कर दिया कि कार सेवा शुरू न हुई तो आत्मदाह करेंगे। दो नवंबर कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रदेश सरकार ने राम भक्तों पर अंधाधुंध गोली चलवा दी जिसमें 22 रामभक्त शहीद हो गए। सात नवंबर को कार सेवा पूरी हुई। विहिप काशी प्रांत के संगठन मंत्री नितिन के अनुसार संतों ने निर्णय लिया कि अयोध्या से सात नवंबर 1990 को मृत 22 कार सेवकों के अस्थि कलश उन राज्यों के जिलों में भेजे जाएंगे जहां के वह निवासी हैं। साथ ही संबंधित राज्य के संगठन पदाधिकारियों को कहा गया कि अस्थि कलश की यात्रा निकाली जाए जिसका दर्शन-पूजन होगा। इसके बाद 14 जनवरी 1991 को मकर संक्रांति के दिन सभी अस्थिकलश प्रयागराज में संतों के हाथों विसर्जित किए गए।

vhpkp
दो नवंबर 1990 की घटना के बाद 1992 में फिर कारसेवा का आह्वान हुआ तो रामभक्तों के सिर पर कुछ भी कर गुजरने का जुनून सवार था।

दो नवंबर 1990 की घटना के बाद 1992 में फिर कारसेवा का आह्वान हुआ तो रामभक्तों के सिर पर कुछ भी कर गुजरने का जुनून सवार था। 1981 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने मोहनलाल पटेल 1989 में पंजाबी धर्मशाला कीडगंज में विश्व हिंदू परिषद की बैठक में भाग लेने के लिए केशव प्रसाद मौर्य (वर्तमान में डिप्टी सीएम) के साथ आए थे। अशोक सिंघल का भाषण सुनकर वह विहिप के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और उस समय द्वाबा संगठन (वर्तमान में कौशांबी तत्कालीन प्रयागराज) के मंत्री की जिम्मेदारी मिली। मोहनलाल बताते हैं-'आज भी याद है छह दिसंबर 1992 के पूर्व कारसेवा जाने के लिए तैयार हुए। मन में डर का माहौल की क्या होगा। लिहाजा हम लोग घर में फोटो खिंचवाकर गए थे कि क्या पता गोली चले या क्या हो, वापस आएंगे भी या नहीं। वहां क्या घटना हो तो कम से कम घर पर फोटो तो रहे। आज भी याद है 1990 के आंदोलन में ठाकुर गुर्जन सिंह हम कार्यकर्ताओं को बताते थे कि पुलिस की ओर से आंसू गैस के गोले दागे जाएंगे। उनके कहने पर आंसू गैस से बचने के लिए चेहरे पर चूना लगाकर प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर के रास्ते अयोध्या पहुंचे थे।' मोहनलाल के शब्दों में-'1991 में घर-घर भगवा ध्वज लगाने का कार्यक्रम आया। अयोध्या से अक्षत की तरह आए प्रसाद भी घर-घर पहुंचाना था। जब घर-घर ध्वज लगाने की बात आई तो प्रयागराज में कहीं पर भी भगवा कपड़ा नहीं मिल रहा था। विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन महानगर उपाध्यक्ष और कपड़ा व्यवसायी जीतराम अग्रवाल ने कानपुर से इतने ट्रक कपड़े मंगवाए कि कानपुर में भगवा कपड़ा कम पड़ गया। प्रयागराज में इतना भगवा कपड़ा आया कि यहीं से पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश को वितरित किया गया। उस समय पूर्वी उत्तर प्रदेश का केंद्र कीडगंज कार्यालय हुआ करता था और कार्यालय की कमान ठाकुर गुर्जन सिंह के हाथों में रहा करती थी।' मोहनलाल बताते हैं कि दक्षिण भारत की ट्रेन प्रयागराज आती थी। कारसेवकों को व्यवस्थित करने और आगे का रास्ता तय करने की रणनीति आचार्य गिरिराज किशोर, ओंकार भावे, रामफल जीते, ठाकुर गुर्जन सिंह आदि तैयार करते थे।

vhpkp
हाईस्कूल में पढ़ते थे, घर में बिना बताए कारसेवा के लिए पहुंचे थे अयोध्या

जासं, प्रयागराज : पुरैला छितपालगढ़ प्रतापगढ़ से पढ़ाई के लिए प्रयागराज आए राजेश उन दिनों जीआईसी में हाई स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे। अपनी मां और भाई के साथ भुलई का पूरा तेलियरगंज में रहते थे। 1990 में जब कर सेवा शुरू हुई तो वह खुद को नहीं रोक पाए। उनपर अपनी दादी की कहानियों का खूब असर था। वह प्राय: श्रीराम मंदिर की कहानी सुनाती और रो पड़ती कि राम लला का मंदिर सैकड़ें वर्ष पूर्व तोड़ दिया गया। इसी बीच उनका संघ की शाखाओं में भी जाना शुरू हो चुका था। आंदोलन के दौरान राम भक्तों के लिए भोजन की व्यवस्था का मौका मिला तो खूब उत्साह दिखाया। अपने साथ मोहल्ले के अन्य घरों से भी पैकेट एकत्र करते थे। यदा कदा पुलिस रोकती तो उन्हें चकमा देकर भाग जाते थे। इसीबीच पता चला कि स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के साथ बड़ा जत्था अयोध्या जा रहा है तो वह भी शामिल हो गए। बिना घर में बताए चल पड़े थे। फाफामऊ पुल पर भीषण लाठी चार्ज और आशु गैस छोड़ा जाने लगा। सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी हुई लेकिन राजेश बच निकले पैदल ही आगे बढ़ते गए। सुल्तानपुर प्रतापगढ़ की सीमा पर उनकी भी गिरफ्तारी हो गई। कोहडौर इंटर कालेज में रखा गया लेकिन भीड़ बढ़ने पर अस्थाई जेल तोड़ कर लोग वहां से भागने में सफल रहे। उनमें राजेश भी शामिल थे। जैसे तैसे वह अयोध्या पहुंच गए। हनुमानगढ़ी में फिर लाठी चार्ज हुआ उसमें गंभीर रूप से घायल हुए। इसीक्रम में 1992 में हुई कारसेवा भी शामिल हुए। 2002 में अयोध्या में राम लला के दर्शन पूजन के लिए पहुंचे तो टेंट में प्रभु को देखकर बरबस ही रो पड़े थे। आज उन्हेंं संतोष है कि प्रभु का मंदिर बन कर तैयार हो चुका है। वर्तमान में वह प्रतापगढ़ के एक विद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ संघ के सह प्रचार प्रमुख प्रयाग उत्तर का दायित्व निर्वहन कर रहे हैं।